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20170505

मालव सुत पं सूर्यनारायण व्यास

मालव सुत पं सूर्यनारायण व्यास

पुण्यश्लोक पं सूर्यनारायण व्यास ( 2 मार्च 1902 ई. - 22 जून 1976 ई.) के जन्मशताब्दी वर्ष पर हम लोगों के सम्पादन में प्रकाशित इस पुस्तक में उनके विविधायामी अवदान पर महत्त्वपूर्ण सामग्री के संचयन का सुअवसर मिला था। वे एक साथ कई रूपों - प्राच्यविद्या विद्, साहित्य मनीषी, इतिहासकार, सर्जक, पत्रकार, ज्योतिर्विद् और राष्ट्रीय आंदोलन के अनन्य स्तम्भ के रूप में सक्रिय रहे। महाकालेश्वर के समीपस्थ उनका निवास भारती भवन क्रांतिकारियों से लेकर संस्कृतिकर्मियों की गतिविधियों का केंद्र रहा। उनकी जन्मशती पर विविध प्रकल्पों के माध्यम से प्रसिद्ध लेखक और मीडिया विशेषज्ञ पं राजशेखर व्यास ने पितृ ऋण से अधिक राष्ट्र ऋण चुकाने का कार्य किया था।  पद्मभूषण पं व्यास जी की पावन स्मृति को नमन।    
   
 पुस्तक: मालव सुत पं सूर्यनारायण व्यास

सम्पादक: श्री हरीश निगम (मालवी के सुविख्यात कवि)
              डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा
               डॉ. हरीश प्रधान

प्रकाशक: लोक मानस अकादेमी एवम् साँझी पत्रिका

इसी पुस्तक से प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा के आलेख के अंश

यद्यपि भारत में पत्रकारिता का आगमन पश्चिम की देन है, किंतु शीघ्र ही यह सैकड़ों वर्षों की निद्रा में सोये भारत की जाग्रति का माध्यम सिद्ध हुई। विश्वजनीन सूचना-संचार के इस विलक्षण माध्यम ने पिछली दो शताब्दियों में अद्भुत प्रगति की है। वहीं भारतीय परिदृश्य में देखें, तो हमारी जातीय चेतना के अभ्युदय, आधुनिक विश्व के साथ हमकदमी, स्वातंत्र्य की उपलब्धि और राजनैतिक-सामाजिक चेतना के प्रसार में हिन्दी पत्रकारिता की अहम भूमिका रही है। पत्रकारिता और साहित्य की परस्परावलंबी भूमिका और दोनों की समाज के प्रतिबिम्ब के रूप में स्वीकार्यता आधुनिक भारत का अभिलक्षण बन कर उभरी है, तो उसके पीछे जो स्पष्ट कारण नज़र आता है, वह है महनीय व्यक्तित्वों की साहित्य एवं पत्रकारिता के बीच स्वाभाविक चहलकदमी। ऐसे साहित्यिकों की सुदीर्घ परम्परा में विविधायामी कृतित्व के पर्याय पद्मभूषण पं. सूर्यनारायण व्यास (1902-1976 ई.) का नाम अविस्मरणीय है, जिन्होंने देश के हृदय अंचल ‘मालवा’ की पुरातन और गौरवमयी नगरी उज्जैन से ‘विक्रम’ मासिक के सम्पादन-प्रकाशन के माध्यम से पत्रकारिता की ऊर्जा को समर्थ ढंग से रेखांकित किया। उनकी पत्रकारिता की उपलब्धि अपने नगर, अंचल और राष्ट्र के पुनर्जागरण और सांस्कृतिक अभ्युदय से लेकर हिन्दी पत्रकारिता को नए तेवर, नई भाषा और नए औजारों से लैस करने में दिखाई देती है, जहाँ पहुँचकर राजनीति, साहित्य, संस्कृति और पत्रकारिता के बीच की भेदक रेखाएँ समाप्त हो गईं। लगभग छह दशक पहले मालवा की हिन्दी पत्रकारिता के खास स्वभाव को गढ़ने से लेकर राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में आज उसकी अलग पहचान को निर्धारित करवाने में पं. व्यासजी और उनके ‘विक्रम’ की विशिष्ट भूमिका रही है।





मालवा का वसीयतनामा: पद्मभूषण पं सूर्यनारायण व्यास के हास्य व्यंग्य लेखन पर केंद्रित रेडियो रूपक 

पद्मभूषण पं सूर्यनारायण व्यास के हास्य - व्यंग्य लेखन पर केंद्रित रूपक ‘मालवा का वसीयतनामा’ का प्रसारण आकाशवाणी, दिल्ली से राष्ट्रीय साहित्यिक पत्रिका ‘साहित्य भारती’ में 7 मार्च, बुधवार को रात्रि 10 बजे होगा। इसे देश के सभी आकाशवाणी केंद्रों पर सुना जा सकेगा। इस रेडियो फ़ीचर का लेखन समालोचक एवं विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने किया है। रूपक में पं व्यास के हास्य - व्यंग्य लेखन के क्षेत्र में योगदान के साथ उन पर केंद्रित वरिष्ठ साहित्यकारों के विचार एवं साक्षात्कार भी समाहित किए गए हैं। वसीयतनामा पं व्यास जी का बहुचर्चित व्यंग्य संग्रह है, जिसका संपादन उनके सुपुत्र और दूरदर्शन एवं ऑल इंडिया रेडियो के अतिरिक्त महानिदेशक पं राजशेखर व्यास, नई दिल्ली ने किया है। रूपक में देश के प्रख्यात कवि एवं पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटलबिहारी वाजपेयी के पं व्यास के व्यंग्य लेखन पर केंद्रित विचारों का समावेश किया गया है। वरिष्ठ व्यंग्यकार प्रो शिव शर्मा, डॉ. पिलकेन्द्र अरोरा, श्री मुकेश जोशी के साक्षात्कार भी इस रूपक शामिल किए गए हैं। रूपक के प्रस्तुतकर्ता श्री जयंत पटेल एवं सुधा शर्मा हैं। 
उल्लेखनीय है कि उज्जैन स्थित सिंहपुरी में 2 मार्च 1902 को जन्मे व्यास जी विविधमुखी प्रतिभा के धनी थे। पंडित सूर्यनारायण व्यास का नाम लेते ही एक साथ कई रूप उभर आते हैं- साहित्यकार, पुराविद, इतिहासकार, क्रांतिकारी, व्यंग्यकार, संस्मरणकार, सम्पादक, पत्रकार, ज्योतिष और खगोल के उत्कृष्ट विद्वान। इन सभी रूपों में उनकी विशिष्ट पहचान रही है। उन्होंने 1919 में व्यंग्य लेखन की शुरुआत की। पं व्यास जी के व्यंग्य लेखन में मालवा धड़कता है। उनका पहला व्यंग्य–संग्रह व्यासाचार्य के नाम से ‘तू-तू मैं-मैं’ पुस्तक भवन, काशी से 1935 में प्रकाशित हुआ था। इसी विषय पर लगभग साठ साल बाद ‘तू—तू मैं-मैं’ धारावाहिक सेटेलाइट चैनल पर प्रसारित हुआ। यह संग्रह व्यास जी के जन्म शताब्दी वर्ष में 2001 में उनके सुपुत्र राजशेखर व्यास के संपादन में पुनः प्रकाशित हुआ। पं व्यास जी का दूसरा महत्त्वपूर्ण व्यंग्य संग्रह ‘वसीयतनामा’ भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित हुआ। यह संग्रह उनके सुपुत्र राजशेखर व्यास द्वारा संपादित है, जिसमें उन्होंने विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में बिखरी व्यास जी की व्यंग्य रचनाओं का श्रमसाध्य संकलन किया। 

प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा Shailendrakumar Sharma 

पद्मभूषण पं सूर्यनारायण व्यास पर एकाग्र रूपक यूट्यूब पर देखा जा सकता है: प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा






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