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20221005

Awarded Ph. D. Hindi Degree From Vikram University, Ujjain | विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन से पीएच डी हिंदी उपाधि प्राप्त शोधकर्ता (2015 - 2022)

हिंदी अध्ययनशाला, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन से पीएचडी हिंदी उपाधि प्राप्त शोधकर्ता 

(2015 - 2022)

हिन्दी भाषा और साहित्य के क्षेत्र में गुणवत्तापूर्ण अध्ययन, अध्यापन और अनुसंधान की दृष्टि से विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में  हिन्दी अध्ययनशाला की स्थापना वर्ष 1966 ई में हुई।प्रारम्भ से ही यहाँ प्रतिष्ठित विद्वान, शिक्षक एवं अध्येता सक्रिय रहे हैं। आचार्य विश्वनाथप्रसाद मिश्र, आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी, आचार्य शिवसहाय पाठक, आचार्य पवनकुमार मिश्र आदि जैसे आचार्यों ने यहाँ प्रारंभिक दशकों में शोध कार्य को गति दी थी। बाद के दौर में हिंदी अनुसंधान को निरन्तरता देते हुए प्रो भगीरथ बड़ौले निर्मल, प्रो हरिमोहन बुधौलिया, प्रो प्रेमलता चुटैल, प्रो गीता नायक, प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा, डॉ जगदीश चंद्र शर्मा आदि ने शोध निर्देशन करते हुए इस दिशा में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। विभाग को देश भर के प्रख्यात साहित्यकारों, मनीषियों के व्याख्यान, संवाद और रचनापाठ  के अवसर मिले हैं। इनमें प्रमुख हैं- सुश्री महादेवी वर्मा, अज्ञेय, नन्ददुलारे वाजपेयी,  शिवमंगलसिंह सुमन, विद्यानिवास मिश्र, भगवतशरण उपाध्याय, नामवर सिंह, देवेन्द्रनाथ शर्मा, कैलाशचन्द्र भाटिया, विश्वम्भरनाथ उपाध्याय, शिवकुमार मिश्र, श्यामसिंह शशि, अशोक वाजपेयी, प्रो गंगाप्रसाद विमल, प्रो सूर्यप्रकाश दीक्षित, महेंद्र भानावत, असगर वजाहत, सूर्यबाला, प्रो रामबक्ष, विजयदत्त श्रीधर आदि।

हाल के दशकों में विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन में एक साथ कई दिशाओं में महत्त्वपूर्ण शोध कार्य हुए हैं, जिनमें हिन्दी भाषा-साहित्य एवं संस्कृति के विविध आयामों के साथ ही लोक एवं जनजातीय भाषा, साहित्य और संस्कृति, आलोचनाशास्त्र, भाषाविज्ञान के विविध आयाम, वाचिक-अवाचिक भाषा-रूप, शब्दविज्ञान, तुलनात्मक भाषाविज्ञान, हिन्दी कम्प्यूटिंग, इंटरनेट, वेब पत्रकारिता, दृश्य जनसंचार माध्यम, मशीनी अनुवाद, राजभाषा हिन्दी आदि के अधुनातन संदर्भ विशेषतः उल्लेखनीय हैं। यह संस्थान मध्यप्रदेश के साहित्यिक-सांस्कृतिक विकास के लिए सक्रिय सहभागिता कर रहा है।  

हिंदी अध्ययनशाला द्वारा संयोजित राष्ट्रीय स्तर के आयोजनों में प्रमुख रहे हैं- काव्य प्राध्यापन कार्यशाला, नाट्य प्राध्यापन कार्यशाला, मिथक संगोष्ठी, पुनश्चर्या पाठ्यक्रम, राष्ट्रीय शब्दावली कार्यशाला, सृजन संस्कार वर्ष, देवनागरी लिपि राष्ट्रीय संगोष्ठी, सूचना प्रौद्योगिकी और हिन्दी कार्यशाला, तुलसी पंचशती समारोह, प्रेमचंद जयंती समारोह, महात्मा गांधी 150 वी जयंती वर्ष पर तीन राष्ट्रीय स्तर की संगोष्ठी, अनेक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी, छात्र अध्ययन यात्रा आदि। कार्यरत शिक्षकों द्वारा राष्ट्रीय संगोष्ठियों, पुनश्चर्या पाठ्यक्रम, कार्यशालाओं और रचनापाठ के आयोजन में सहयोग-सहकार रहा है। जिन संस्थाओं के साथ विभिन्न अकादमी की गतिविधियां आयोजित की गई, उनमें विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, नई दिल्ली, वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग, भारत सरकार, केंद्रीय हिन्दी निदेशालय, भारत सरकार, साहित्य अकादमी, नई दिल्ली, प्रेमचंद सृजनपीठ, म प्र संस्कृति परिषद, म प्र शासन, नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली, मध्य प्रदेश राष्ट्रभाषा भाषा प्रचार समिति, भोपाल, सप्रे संग्रहालय, भोपाल आदि।

- प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा 

 


हिंदी अध्ययनशाला में अब तक सैकड़ों की संख्या में शोधार्थियों ने स्तरीय शोध कार्य के माध्यम से इस विभाग के गौरव को बढ़ाया है। यहां वर्ष 2015 से 2022 तक के पीएचडी उपाधि प्राप्त शोधकर्ताओं की सूची प्रस्तुत है।

1. नेहा नागर 2015

2. रोहन सिंह 2015

3. आभा सक्सेना 2015

4. शेबा सैयद 2015

5. योगेंद्र जोशी 2015

6. महेंद्र रणदा 2015

7. श्वेता परिहार 2015

8.  नरेंद्रपाल शर्मा 2015

9.  संदीप कुमार सिंह  2015

10. नंदिता चौहान 2015

11. ईश्वर सिंह पाटीदार 2015

12. चंदनबाला कोठारी  2015

13. वंदना शर्मा 2015

14. मीनाक्षी पुरोहित 2016

15. दीपक शर्मा 2016

16. गीतांजलि मिश्रा 2016

17. दीपक शर्मा 2016

18. प्रिया गंगापुरकर 2016

19. अल्पना बाकलीवाल 2016

20. रूपा भावसार 2016

21. जगदीश परमार 2016

22. सुशील कुमार सिंह 2016

23.  उल्लास सोपान पाटील  2016

24. पिंकी कोठारे 2016

25.  स्मिता करंजगांवकर 2016

26. नम्रता ओझा 2016

27. चंद्रकांता बड़ोले 2016

28. संगीता गुप्ता 2016

29. श्यामलाल निर्मल 2016

30.  तोफानलाल चौहान 2017

31. कविता सूर्यवंशी 2017

32. अर्चना मेहता 2017

33. शीतल सिंह तोमर 2017

34. रेहाना बेगम 2017

35. उर्मिला पोरवाल 2017

36. प्रेरणा ठाकरे परिहार 2017

37. मुकेश चौहान 2017

38. रमाकांत पाल 2017

39. संध्या राजपूत 2017

40. ज्योतिबाला बैस 2017

41.  निशा शर्मा 2017

42.  भूपेंद्र सिंह भदौरिया 2017

43. प्रियंका शर्मा 2017

44. ममता चंद्रावत 2017

45. ज्योति यादव 2016

46.  संजय कुमार राठौर 2018

47. सतीश कुमार 2018

48. श्वेता पंड्या 2018

48. मेघा गुप्ता 2018

50. गायत्री शर्मा 2018

51. रूपाली सारये 2018

52. कादम्बिनी जोशी 2018

53. प्रतिभा गुर्जर 2018

54. कला मौर्य 2018

55. कैलाश चंद्र बाडोलिया 2018

56.  माधवी भट्ट 2019

57. पूर्णिमा पोरवाल 2019

58.  मीनल मेहना 2019 

59. अमित कुमार 2019

60. मुकेश भार्गव 2019

61. मोनिका वैष्णव 2019

62.  बृजेंद्र सिंह तोमर 2019

63. अर्जुन सिंह पंवार 2019

64. संजय अटेरिया 2019

65. भारती ठाकुर 2019

66. श्रुति पाठक 2019

67. केदार गुप्ता 2020

68. स्वप्नदीप परमार 2020

69. विजय कुमार शर्मा 2020

70. उमेश कुमार गुप्ता 2020

71. आस्था व्यास 2020

72.  पंढरीनाथ देवले 2020

73. संदीप कुमार यादव 2020

74. निरूपा उपाध्याय 2020

75. रीता माहेश्वरी 2020

76. भावना शर्मा 2020

77. राम सिंह सौराष्ट्रीय 2020

78. रिपुदमन तिवारी 2020

79. तारा वाणिया 2020

80. अनामिका कतरोलिया  2021

81. आरती परमार 2021

82. प्रियंका नाग 2021

83. स्वर्णलता ठन्ना 2021

84. श्वेता पाण्डेय 2021

85. प्रियंका परस्ते 2021

86. डॉली सिंह नागर 2021

87. सुदामा सखवार 2021

88. कुलदीप जाट 2021

89. उर्मिला शर्मा 2021

90. ममता सोलंकी 2021

91. मणिकुमार मिमरोट 2021

92. ज्योति नाहर 2021

93. हृदयनारायण तिवारी 2021

94. अभिलाषा तिवारी 2021

95. संजय कुमार 2022

96. संतोष चौहान 2022

97. सीमा सेन 2022

98. अनीता अग्रवाल 2022

99. मधुबाला मारू 2022

100. दयाराम नर्गेश 2022

101. शैलेंद्र प्रताप 2022

102. संदीप सिद्ध 2022

103. दीपशिखा परमार 2022

104. दुर्गा राजलवाल 2022


20210110

दुनिया में हिंदी : इक्कीसवीं सदी में संभावनाओं की तलाश - प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा | Hindi in the World: Exploring Possibilities in the Twenty-first Century - Prof. Shailendra Kumar Sharma

यूनाइटेड नेशंस में हिंदी की प्रतिष्ठा के लिए सौ से अधिक देशों में बसे भारतीय संकल्प लें


स्कैंडिनेवियन देशों में हिंदी में प्रकाशन की राह खुली


दुनिया में हिंदी : इक्कीसवीं सदी में  संभावनाओं की तलाश पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी 


विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर भारत नॉर्वेजियन सांस्कृतिक फोरम, ओस्लो, नॉर्वे, स्पाइल दर्पण और वैश्विका अंतरराष्ट्रीय पत्रिका के संयुक्त तत्वावधान में अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन किया गया।  कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग, नई दिल्ली के चेयरमैन प्रोफेसर अवनीश कुमार, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक एवं समालोचक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा एवं विख्यात नृतत्त्वशास्त्री प्रो मोहनकान्त गौतम, नीदरलैंड थे। आयोजन की पीठिका प्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार, अनुवादक और मीडिया विशेषज्ञ श्री शरद चन्द्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे ने प्रस्तुत की। 


दुनिया में हिंदी : इक्कीसवीं सदी की संभावनाओं की तलाश पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी

संगोष्ठी का प्रसारण फेसबुक पर देखा जा सकता है : 

https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10224227242325952&id=1149296433







आयोजन की विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ कवयित्री श्रीमती जय वर्मा, यूके, श्री रवि शर्मा, लन्दन, डॉ विनोद कालरा, जालन्धर, श्री सुरेश पांडेय, स्टॉकहोम, स्वीडन, डॉ ऋचा पांडेय, लखनऊ, डॉ मुकेश कुमार मिश्र, बस्ती, श्री अभिषेक त्रिपाठी, बेलफास्ट, आयरलैंड, श्रीमती संगीता शुक्ला दिदरेक्सन, ओस्लो, नॉर्वे आदि ने हिंदी के वैश्विक परिदृश्य पर प्रकाश डाला। यह संगोष्ठी दुनिया में हिंदी : इक्कीसवीं सदी में संभावनाओं की तलाश पर केंद्रित थी।




 


मुख्य वक्ता लेखक एवं आलोचक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि हिंदी भारतीय संस्कृति और हमारी अस्मिता को आधार देती है। हिंदी सहित भारतीय भाषाएं सही अर्थों में ऐश्वर्य प्रदान करने का माध्यम हैं। प्रवासी भारतीय अपनी भाषाओं को प्रोत्साहन देते हुए आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। यूनाइटेड नेशंस में हिंदी की प्रतिष्ठा हो, एक सौ दस से अधिक देशों में बसे भारतीय इसका संकल्प लें। दुनिया के विभिन्न भागों में अनेक स्वैच्छिक और साहित्यिक संस्थाएं हिंदी के प्रसार का काम कर रही हैं, उन्हें नए परिवेश के अनुरूप आधार मिलना चाहिए। देवनागरी के साथ हिंदी के नैसर्गिक रिश्ते को व्यापक फलक पर प्रसारित करने की आवश्यकता है। इक्कीसवीं सदी हिंदी की है। शिक्षा, अनुसंधान, सांस्कृतिक - भावात्मक एकता, साहित्यिक अभिव्यक्ति और जनसंचार माध्यमों से  हिंदी की नई संभावनाएं उजागर हो रही हैं। विश्व हिंदी दिवस को मनाते हुए हिंदी के साथ आत्म स्वाभिमान का भाव जगाना होगा।





 
वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग, नई दिल्ली के चेयरमैन प्रो अवनीश कुमार ने कहा कि हिंदी के विकास में विदेशों में बसे भारतीय महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। आभासीय माध्यम से लोग परस्पर जुड़ रहे हैं। नए दौर में दूरियां कम हुई हैं। हिंदी एवं विदेशी भाषाओं के बीच परस्पर अनुवाद कार्य में तेजी आनी चाहिए। भारत सरकार के विभिन्न संस्थानों के द्वारा शब्दावली निर्माण, शब्दकोश एवं विश्वकोश के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया गया है। ये सभी पारस्परिक अनुवाद के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। नई शिक्षा नीति में  मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा पर बल दिया गया है। इससे मौलिक चिंतन में वृद्धि होती है।




वरिष्ठ लेखक एवं नृतत्त्वशास्त्री प्रोफेसर मोहनकांत गौतम, नीदरलैंड ने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि प्रवासी भारतीयों ने भारत के बाहर हिंदी के लिए बहुत कार्य किया है। उनके काम को भारत में प्रचार प्रसार मिलना चाहिए। भारत हम लोगों के लिए माता पिता की तरह है, वहां से प्रेरणा और प्रोत्साहन मिले, यह जरूरी है। भारतीय स्कूलों में पाठ्यक्रम के माध्यम से यह बताया जाए कि प्रवासी भारतीयों ने अनेक चुनौतियों के बावजूद बाहर जाकर क्या किया। भारत से बाहर बसे लोग भारत को निरंतर ढूंढते रहते हैं। सांस्कृतिक और भाषाई एकता से सारी दुनिया में बसे भारतवंशी जुड़ें, यह जरूरी है। हिंदी का व्याकरण लेटिन भाषा के अनुसार बना है। संस्कृत का व्याकरण संज्ञा केंद्रित है, जबकि हिंदी का व्याकरण लेटिन भाषा के अनुकरण के कारण क्रिया केंद्रित बन गया है। उन्होंने साउथ एशियन लिटरेचर एंड लैंग्वेज एसोसिएशन जैसी संस्था के निर्माण की आवश्यकता पर बल दिया, जो हिंदी सहित विभिन्न भारतीय भाषाओं और साहित्य के विकास के लिए कारगर सिद्ध होगी।




वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक ने नॉर्वे सहित  स्कैंडिनेवियन देशों में हिंदी की  प्रगति और संभावनाओं पर प्रकाश डाला।  उन्होंने कहा कि स्कैंडिनेवियन देशों में हिंदी में प्रकाशन की राह खुली है। श्री शुक्ल ने विगत दिनों प्रकाशित चर्चित काव्य संग्रह लॉक डाउन की चुनिंदा रचनाओं का पाठ किया।  


वरिष्ठ प्रवासी कवयित्री श्रीमती जय वर्मा, यूके ने अपनी कविता मैं सबकी प्रिय हिंदी हूँ सुनाई। उनकी एक रचना की पंक्तियों ने भरपूर दाद बटोरी, चल निकल चलें तेरे जहां गुलिस्ता से, कौन जानता है कि राह किधर ले जाए। 


डॉ ऋचा पांडेय, लखनऊ ने श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक द्वारा कोविड-19 महामारी के दौर की संवेदनाओं को लेकर दुनिया की किसी भी भाषा में रचित पहली काव्य कृति लॉक डाउन की समीक्षा प्रस्तुत की।




प्रो आशुतोष तिवारी, स्वीडन ने कहा कि प्रवासी भारतीयों के मन में भारत बसता है। वे वैश्विक मंच पर हिंदी को पहुंचा रहे हैं। भाषा लोगों को जोड़ती है उससे सामाजिक दृष्टिकोण विकसित होता है। स्वीडन में हिंदी में प्रकाशन किया जा रहा है।




श्रीमती संगीता शुक्ला दिदरेक्सन, नॉर्वे ने हिंदी शिक्षण के लिए नॉर्वे में उनके द्वारा प्रारंभ किए गए पहले स्कूल के अनुभवों की चर्चा की। उन्होंने कहा कि हिंदी के जरिए भारतीय संस्कृति से जुड़ाव हो, यह जरूरी है। बच्चों को खेल, कविता, नृत्य, नाटक आदि गतिविधियों के माध्यम से हिंदी से जोड़ने का प्रयास किया जाना चाहिए। मातृभाषा वास्तविक भावनाओं की भाषा होती है। बच्चे मातृभाषा के माध्यम से जल्दी सीख सकते हैं। पारिवारिक भावना का विकास भी इसके माध्यम से किया जा सकता है।


श्री रवि शर्मा, लंदन ने कहा कि हिंदी के विस्तार में सिनेगीतों का महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने अपना गीत सुनाया जिसकी पंक्तियाँ थीं, बिना हम सफर के सफर कम नहीं था, पुरानी थी नैया भंवर कम नहीं था।


डॉक्टर गंगाधर वानोड़े, हैदराबाद ने कहा कि देश विदेश में हिंदी प्रचार - प्रसार के लिए केंद्रीय हिंदी संस्थान महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है। लगभग पचास देशों के विद्यार्थी केंद्रीय हिंदी संस्थान में अध्ययन कर रहे हैं। संस्थान द्वारा विभिन्न भाषाओं के अध्येता कोशों और पाठमालाओं का प्रकाशन किया गया है।


कार्यक्रम में डॉ मुकेश मिश्र, बस्ती ने भी विचार व्यक्त किए। 


डॉ विनोद कालरा, जालंधर ने कहा कि हिंदी हमारी अस्मिता के केंद्र में हैं। हमारा हर पल, हर क्षण हिंदी का हो यह आवश्यक है। उन्होंने मैं खुशबू बन कर लौटूंगी शीर्षक कविता सुनाई,  जिसकी पंक्तियां थीं, तुम भले ही मुझे भूल चुके, मैं तेरे जीवन के आंगन में खुशबू बनकर लौटूंगी।


श्री प्रवीण गुप्ता, नॉर्वे, श्री सुरेश पांडेय, स्वीडन एवं श्री गुरु शर्मा ओस्लो ने अपनी कविताएँ सुनाईं। श्री अभिषेक त्रिपाठी, आयरलैंड ने यह जो अपनी हिंदी है और सूरज और दीपक के संवाद पर केंद्रित कविता सुनाईं।

कार्यक्रम का जीवंत प्रसारण सोशल मीडिया के माध्यम से किया गया, जिसे देश दुनिया के सैकड़ों लोगों ने देखा। 


कार्यक्रम का संयोजन वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार श्री सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक ने किया।


ज्ञातव्य है कि विश्व हिंदी दिवस  प्रत्येक वर्ष 10 जनवरी को पूरी दुनिया में मनाया जाता है। इसका उद्देश्य विश्व में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिये जागरूकता पैदा करना तथा हिन्दी को अन्तराष्ट्रीय भाषा के रूप में प्रस्तुत करना है। देश दुनिया की हिंदी सेवी संस्थाओं और सरकारी विभागों के साथ विदेशों में भारत के दूतावास इस दिन को विशेष रूप से मनाते हैं।

20150806

विराट भारतीय चेतना के रचनाकार मैथिलीशरण गुप्त - प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा

विराट भारतीय चेतना के रचनाकार मैथिलीशरण गुप्त
 - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा
मैथिलीशरण गुप्त विराट भारतीय चेतना के रचनाकार थे। राष्ट्रीय आंदोलन को गति देने में राष्ट्रकवि गुप्त जी की अविस्मरणीय भूमिका रही है। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से राष्ट्रप्रेम को जगाने के साथ ही अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध प्रतिरोध की ताकत पैदा की। वे आलोचकों के सामने सदैव चुनौती बने रहे, जिन्होंने उन्हें अपने पूर्व निश्चित साँचों में बांधने की कोशिश की। उनकी दृष्टि में भारत केवल भूखंड नहीं है, वह साक्षात परमेश्वर की मूर्ति है। उनके लिए भारत एक भाव का नाम है: 

नीलांबर परिधान हरित तट पर सुन्दर है।
सूर्य-चन्द्र युग मुकुट, मेखला रत्नाकर है॥
नदियाँ प्रेम प्रवाह, फूल तारे मंडन हैं।
बंदीजन खग-वृन्द, शेषफन सिंहासन है॥
करते अभिषेक पयोद हैं, बलिहारी इस वेष की।
हे मातृभूमि! तू सत्य ही, सगुण मूर्ति सर्वेश की॥



राष्ट्रीय चेतना को सामाजिक चेतना से अलग करके देखना उचित नहीं है। गुप्त जी ने नारी सशक्तीकरण को भी उतना ही महत्त्व दिया है, जितना राष्ट्रोत्थान को। वे एक और अखण्ड राष्ट्रीयता के प्रादर्श को रचते हैं। जब देश को भाषा, क्षेत्र, जाति, संप्रदाय आदि के आधार पर विभाजित करने के प्रयास किए जा रहे हों, तब मैथिलीशरण गुप्त का काव्य हमारा सही मार्गदर्शन करता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमने मौलिक चिंतन बंद कर दिया है। गुप्त जी हमें सभी प्रकार से जगाने आए थे। 

(श्री मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति द्वारा इंदौर में आयोजित समारोह में राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त को याद करते हुए वक्तव्य के अंश और विभिन्न अख़बारों की कटिंग्स के साथ साभार प्रस्तुत हैं।)








                                                 



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