पेज

20141124

शोध की नितनूतन दिशाओं की तलाश में गतिशील 'अक्षर वार्ता'

सम्पादकीय- नवंबर 2014 मानवीय ज्ञान की उन्नति और जीवन की सुगमता के लिए शोध की महत्ता एक स्थापित तथ्य है। प्रारम्भिक शोध का लक्ष्य नवीन तथ्यों का अन्वेषण था। इसके साथ क्रमशः व्याख्या-विवेचना का पक्ष जुड़ता चला गया। शोध की नई-नई प्रक्रिया-प्रविधियों के विकास के साथ मानवीय ज्ञान का क्षितिज भी विस्तृत होता चला गया। यह कहना उचित होगा कि वर्तमान विश्व शोध की असमाप्त यात्रा का एक पड़ाव भर है, चरम नहीं। मनुष्य के कई स्वप्न, कई कल्पनाएँ अब वास्तविकता में परिणत हो चुके हैं और अनेक साकार होने जा रहे हैं। यह सब अनुसंधान कर्ताओं की शोध-दृष्टि और उस पर टिके रहकर किए गए अथक प्रयासों से ही संभव हो सका है। सदियों पहले किए गए कई शोध आज की हमारी नई दुनिया की नींव बने हुए हैं। मुश्किल यह है कि हमारी नज़र कंगूरों पर टिकी होती है, नींव ओझल बनी रहती है। वस्तुतः ऐसे नींव के पत्थर बने शोधकर्ताओं को स्मरण किया जाना चाहिए। अनुसंधान की अनेकानेक पद्धतियाँ हैं, जो ज्ञानमीमांसा पर निर्भर करती हैं। यह दृष्टिकोण ही मानविकी और विज्ञान के भीतर और उनके बीच - दोनों में पर्याप्त भिन्नता ले आता है। अनुसंधान के कई रूप हैं- वैज्ञानिक, तकनीकी, मानविकी, कलात्मक, सामाजिक, आर्थिक, व्यापार, विपणन, व्यवसायी अनुसंधान आदि। यह शोधकर्ता के दृष्टिकोण पर ही निर्भर करता है कि वह किस पद्धति को आधार बनाता है या उसका फोकस किस पर है। वर्तमान दौर में वैज्ञानिक अनुसंधान के क्षेत्र में तेजी आई है। यह अनुसंधान डेटा संग्रह, जिज्ञासा के दोहन का एक व्यवस्थित तरीका है। यह शोध व्यापक प्रकृति और विश्व की सम्पदा की व्याख्या के लिए वैज्ञानिक सूचनाएं और सिद्धांत उपलब्ध कराता है। यह विविध क्षेत्रों से जुड़े व्यावहारिक अनुप्रयोगों को संभव बनाता है। वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए पहले समस्या की तलाश करना होती है। तत्पश्चात उसकी प्राक्कल्पना करना होती है। उसके बाद अन्वेषण आगी बढ़ता है, जहां विविध प्रकार के आंकड़ों का परीक्षण-विश्लेषण कर एक निश्चित निष्कर्ष तक पहुंचा जाता है। पूर्व-कल्पनाएं और अब तक प्राप्त तथ्य बार-बार पुनरीक्षित किए जाते हैं। वैज्ञानिक अनुसंधान विभिन्न प्रकार के संगठनों और कंपनियों सहित निजी समूहों द्वारा वित्तपोषित होते हैं। वैज्ञानिक अनुसंधान उनके अकादमिक और अनुप्रयोगात्मक अनुशासनों के अनुरूप विभिन्न आयामों में वर्गीकृत किए जा सकता हैं। वैज्ञानिक अनुसंधान एक अकादमिक संस्था की प्रतिष्ठा को पहचानने के लिए व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली कसौटी माना जाता है। लेकिन कुछ लोग तर्क देते हैं कि इस आधार पर संस्था का गलत आकलन होता है, क्योंकि अनुसंधान की गुणवत्ता शिक्षण की गुणवत्ता का संकेत नहीं करती है और इन्हें आवश्यक रूप से पूरी तरह एक-दूसरे से सहसंबद्ध नहीं किया जा सकता है। मानविकी के क्षेत्र में अनुसंधान में कई तरह प्रविधियाँ, उदाहरण के तौर पर व्याख्यात्मक और संकेतपरक आदि समाहित होती हैं और उनके सापेक्ष ज्ञानमीमांसा आधार बनती है। मानविकी के अध्येता आम तौर पर एक प्रश्न के परम सत्य उत्तर के लिए खोज नहीं करते हैं, वरन उसके सभी ओर के मुद्दों और विवरणों की तलाश में सक्रिय होते हैं। संदर्भ सदैव महत्वपूर्ण बना रहता है और यह संदर्भ, सामाजिक, ऐतिहासिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक या जातीय हो सकता है। मानविकी में अनुसंधान का एक उदाहरण ऐतिहासिक पद्धति में सन्निहित है, जो ऐतिहासिक पद्धति पर प्रस्तुत किया जाता है। इतिहासकार एक विषय के व्यवस्थित अन्वेषण के लिए प्राथमिक स्रोतों और साक्ष्यों का प्रयोग करते हैं और तब अतीत के लेखे-जोखे के रूप में इतिहास का लेखन करते हैं। रचनात्मक अनुसंधान को 'अभ्यास आधारित अनुसंधान' के रूप में भी देखा जाता है। यह अनुसंधान वहाँ आकार लेता है, जब रचनात्मक कार्यों को स्वयं शोध या शोध के लक्ष्य के रूप में लिया जाता है। यह चिंतन का विवादी रूप है, जो ज्ञान और सत्य की तलाश में अनुसंधान की विशुद्ध वैज्ञानिक प्रविधियों के समक्ष एक विकल्प प्रदान करता है। शोध की प्रयोजनपरकता, स्तरीयता और गुणवत्ता की राह सुगम हो, यह विचार इस पत्रिका के लक्ष्यों में अन्तर्निहित है। शोध की नितनूतन दिशाओं की तलाश में सक्रिय अनेक विद्वानों, मनीषियों और शोधकर्ताओं का सक्रिय सहयोग हमें मिल रहा है। सांप्रतिक शोध परिदृश्य में 'अक्षर वार्ता' रचनात्मक हस्तक्षेप का विनम्र प्रयास है , इस दिशा में आप सभी के सहकार के लिए हम कृतज्ञ हैं। पत्रिका को बेहतर बनाने के लिए आपके परामर्श हमारे लिए सार्थक सिद्ध होंगे, ऐसा विश्वास है।
प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा -प्रधान संपादक एवं डॉ मोहन बैरागी - संपादक

20141008

संस्कृतिकर्म को प्रोत्साहित करे मीडिया

पत्रकारिता के बदलते सरोकार पर राष्ट्रीय परिसंवाद एवं सम्मान समारोह में विद्वानों ने जताई चिंता उज्जैन। बदलते दौर और व्यावसायिकता का गहरा प्रभाव पत्रकारिता पर दिखाई दे रहा हैं। ऐसे में भारतीय मीडिया जगत संस्कृतिकर्म को प्रोत्साहित करना भुलने लगा है,जबकि विदेशो में हमारी संस्कृति के आकर्षण को जिंदा रखा जा रहा है। यहां के मीडिया को चाहिये कि भाषा और संस्कृति को लेकर सजगता लाये और लिपि को बचाने में भी अपना योगदान दें। यह सीख वरिष्ठ मीडिया विशेषज्ञ एवं बैंक ऑफ बडौदा, मुंबई के सहायक महाप्रबंधक डॉ.जवाहर कर्नावट ने दी। वे रविवार को कालिदास अकादमी के अभिरंग नाट्यगृह में आयोजित राष्ट्रीय परिसंवाद एंव सम्मान समारोह में बोल रहे थे। संस्था कृष्णा बसंती और झलक निगम सांस्कृतिक न्यास के इस आयोजन में दैनिक भास्कर के एमपी-2 हेड नरेन्द्र सिंह अकेला ने भी पत्रकारिता के क्षेत्र में आ रहे बदलाव पर अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि बीते दौर में सीमित संसाधनों में पत्रकारिता का बेहतर निर्वहन होता था। आज संसाधन और सुविधाएं बढ़ीं, वहीं पत्रकारिता के ज्ञान का अभाव दिखाई देता है। इस क्षेत्र के लोगों में समर्पण और लगन के साथ ही अपने दायित्वों की जिम्मेदारी का अभाव झलकता है। समारोह की अध्यक्षता कर रहें विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक और समालोचक डॉ.शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने संस्कृति और समाज को गति देने में पत्रकारिता को आगे आने की बात की। डॉ.लक्ष्मीनारायण पयोधि, भोपाल ने आंचलिक पत्रकारिता के लिए क्षैत्रिय समाज और संस्कृति की पृष्ठभुमि का ज्ञान जरुरी होने पर जोर दिया। वरिष्ठ पत्रकार एवं कला समीक्षक विनय उपाध्याय, भोपाल ने संस्कृति कर्म को लेकर मीडिया में उपेक्षा का का जिक्र करते हुए इसे अनुचित करार दिया और कला और जीवन के अटूट रिश्ते को समझने की बात कही। डॉ.भगवतीलाल राजपुरोहित ने स्वर्गीय झलक निगम के मालवी साहित्य एवं सस्कृति के क्षेत्र में उनके अवदान पर प्रकाश डाला। वरिष्ठ अधिवक्ता सुभाष गौड ने भी स्वर्गीय निगम के मालवी के संवर्धन के लिए व्यापक प्रयत्न का उल्लेख किया। कार्यक्रम के शुभारंभ में लेखिका सुशीला निर्मोही के पांचवें काव्य संग्रह ‘कलरव’ तथा अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिका अक्षर वार्ता का लोकापर्ण अतिथियों द्वारा किया गया। इसके अलावा प्रसन्नता शिंदे के अग्रेजी उपन्यास डिस्क्रीमिनेशन अगेंस्ट मेन ‘ए ट्रू लव टेल’ के कवर पेज का विमोचन किया। ‘कलरव’ की समीक्षा व्यंगकार डॉ.पिलकेन्द्र अरोरा ने की। अतिथि परिचय डॉ.जगदीशचंद्र शर्मा ने दिया। संस्था कृष्णा बसंती की गतिविधियों एवं उद्देश्यों की जानकारी संस्था अध्यक्ष डॉ.मोहन बैरागी ने दी। झलक निगम सांस्कृतिक न्यास की जेड श्वेतिमा निगम ने न्यास की जानकारी दी। इसी बीच संस्था कृष्णा बसंती द्वारा साहित्य,पत्रकारिता,लेखन एवं कला आदि क्षेत्र में योगदान देने वालों को सम्मानित किया गया। अतिथि स्वागत श्वेतिमा निगम,रुचिर प्रकाश निगम,डॉ. मोहन बैरागी,निशा बैरागी,भावना निगम,डॉ.ओ.पी.वैष्णव,सुरेश बैरागी, कृष्णदास बैरागी आदि ने किया। सरस्वती वंदना मालवी कवि मोहन सोनी ने की। परिसंवाद का संचालन श्री जीवनप्रकाश आर्य ने किया। वृहद काव्य गोष्ठी का संचालन कृष्णदास बैरागी द्वारा किया गया,जबकि पुस्तक विमोचन का संचालन कार्यक्रम का संचालन राजेश चौहान राज ने किया। आभार कृष्णा बसंती के डॉ.ओ.पी.वैष्णव ने माना। इनका किया सम्मान-साहित्य के क्षेत्र में वरिष्ठ कवि मोहन सोनी,व्यंग्यकार पिलकेन्द्र अरोरा,शायर रमेशचंद्र ‘सोज’,कवि अरविंद त्रिवेदी ‘सनन’,गीतकार कैलाश ‘तरल’,लघुकथाकार संतोष सुपेकर,रचनाकार संदीप सृजन,व्यंग्यकार राजेन्द्र देवधरे,गीतकार राजेश चौहान ‘राज’,पक्षीवैज्ञानिक डॉ. जे पी एन पाठक,चित्रकार अक्षय आमेरिया,पत्रकार राजीव सिंह भदौरिया (दैनिक भास्कर),रवि चंद्रवंशी (पत्रिका),निरुक्त भार्गव (फ्रीप्रेस) और सुधीर नागर (नईदुनिया) के अलावा इलेक्ट्रानिक मीडिया से फोटो जर्नलिस्ट प्रकाश प्रजापत (नईदुनिया) तथा सुनील मगरिया (हिंदुस्तान टाईम्स) आदि प्रमुख थे। [प्रस्तुति-डॉ.मोहन बैरागी,अध्यक्ष,संस्था कृष्णा बसंती, उज्जैन ]

Featured Post | विशिष्ट पोस्ट

महात्मा गांधी : विचार और नवाचार - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा : वैचारिक प्रवाह से जोड़ती सार्थक पुस्तक | Mahatma Gandhi : Vichar aur Navachar - Prof. Shailendra Kumar Sharma

महात्मा गांधी : विचार और नवाचार - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा : पुस्तक समीक्षा   - अरविंद श्रीधर भारत के दो चरित्र ऐसे हैं जिनके बारे में  सबसे...

हिंदी विश्व की लोकप्रिय पोस्ट