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20171128

प्रो. शैलेन्द्रकुमार शर्मा विद्यासागर सम्मानोपाधि से विभूषित

विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ के 18 वें अधिवेशन में सम्मानित हुए प्रो.शर्मा

विनत सारस्वत साधना, साहित्य- संस्कृति और हिन्दी के प्रसार एवं संवर्धन के लिए किए गए विनम्र प्रयासों के लिए मुझे विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, ईशीपुर, भागलपुर [बिहार] द्वारा विद्यासागर सम्मानोपाधि से अलंकृत किया गया। इस मौके पर डॉ अनिल जूनवाल की खबर -

विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक एवं प्रसिद्ध समालोचक प्रो. शैलेन्द्रकुमार शर्मा को उनकी सुदीर्घ सारस्वत साधना, साहित्य- संस्कृति के क्षेत्र में किए महत्वपूर्ण योगदान और हिन्दी के व्यापक प्रसार एवं संवर्धन के लिए किए गए उल्लेखनीय कार्यों के लिए विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, ईशीपुर, भागलपुर [बिहार] द्वारा विद्यासागर सम्मानोपाधि से अलंकृत किया गया। उन्हें यह सम्मानोपाधि उज्जैन में गंगाघाट स्थित मौनतीर्थ में आयोजित विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ के 18 वें अधिवेशन में कुलाधिपति संत श्री सुमनभामानस भूषण’, वरिष्ठ साहित्यकार डॉ योगेन्द्रनाथ शर्माअरुण’[रूड़की ], प्रतिकुलपति डॉ अमरसिंह वधान एवं कुलसचिव डॉ देवेन्द्रनाथ साह के कर-कमलों से अर्पित की गई । इस सम्मान के अन्तर्गत उन्हें सम्मान-पत्र, स्मृति चिह्‌न, पदक एवं साहित्य अर्पित किए गए। सम्मान समारोह की विशिष्ट अतिथि नोटिंघम [यू के] की वरिष्ठ रचनाकर जय वर्मा, प्रो नवीचन्द्र लोहनी [मेरठ] एवं डॉ नीलिमा सैकिया [असम] थे। इस अधिवेशन में देश-विदेश के सैंकड़ों संस्कृतिकर्मी उपस्थित थे।

     प्रो. शर्मा आलोचना, लोकसंस्कृति, रंगकर्म, राजभाषा हिन्दी एवं देवनागरी लिपि से जुड़े शोध,लेखन एवं नवाचार में विगत ढाई दशकों से निरंतर सक्रिय हैं । उनके द्वारा लिखित एवं सम्पादित पच्चीस से अधिक ग्रंथ एवं आठ सौ से अधिक आलेख एवं समीक्षाएँ प्रकाशित हुई हैं। उनके ग्रंथों में प्रमुख रूप से शामिल हैं- शब्द शक्ति संबंधी भारतीय और पाश्चात्य अवधारणा, देवनागरी विमर्श, हिन्दी भाषा संरचना, अवंती क्षेत्र और सिंहस्थ महापर्व, मालवा का लोकनाट्‌य माच एवं अन्य विधाएँ, मालवी भाषा और साहित्य, मालवसुत पं. सूर्यनारायण व्यास,आचार्य नित्यानन्द शास्त्री और रामकथा कल्पलता, हरियाले आँचल का  हरकारा : हरीश निगम, मालव मनोहर आदि। प्रो.शर्मा को देश – विदेश की अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है। उन्हें प्राप्त सम्मानों में थाईलैंड में विश्व हिन्दी सेवा सम्मान, संतोष तिवारी समीक्षा सम्मान, आलोचना भूषण सम्मान आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी राष्ट्रीय सम्मान, अक्षरादित्य सम्मान, शब्द साहित्य सम्मान, राष्ट्रभाषा सेवा सम्मान, राष्ट्रीय कबीर सम्मान, हिन्दी भाषा भूषण सम्मान आदि प्रमुख हैं।
      प्रो. शर्मा को विद्यासागर सम्मानोपाधि से अलंकृत किए जाने पर म.प्र. लेखक संघ के अध्यक्ष प्रो. हरीश प्रधान, विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. जवाहरलाल कौल,  पूर्व कुलपति प्रो. रामराजेश मिश्र, पूर्व कुलपति प्रो. टी.आर. थापक, पूर्व कुलपति प्रो. नागेश्वर राव,  कुलसचिव डॉ. बी.एल. बुनकर, विद्यार्थी कल्याण संकायाध्यक्ष डॉ राकेश ढंड , इतिहासविद्‌ डॉ. श्यामसुन्दर निगम, साहित्यकार श्री बालकवि बैरागी, डॉ. भगवतीलाल राजपुरोहित, डॉ. शिव चौरसिया, डॉ. प्रमोद त्रिवेदी, प्रो प्रेमलता चुटैल, प्रो गीता नायक, डॉ. जगदीशचन्द्र शर्मा, प्रभुलाल चौधरी, अशोक वक्त, डॉ. अरुण वर्मा, डॉ. जफर मेहमूद, प्रो. बी.एल. आच्छा, डॉ. देवेन्द्र जोशी, डॉ. तेजसिंह गौड़, डॉ. सुरेन्द्र शक्तावत, श्री युगल बैरागी, श्री नरेन्द्र श्रीवास्तव 'नवनीत', श्रीराम दवे, श्री राधेश्याम पाठक 'उत्तम', श्री रामसिंह यादव, श्री ललित शर्मा, डॉ. राजेश रावल सुशील, डॉ. अनिल जूनवाल, डॉ. अजय शर्मा, संदीप सृजन, संतोष सुपेकर, डॉ. प्रभाकर शर्मा, राजेन्द्र देवधरे 'दर्पण', राजेन्द्र नागर 'निरंतर', अक्षय अमेरिया, डॉ. मुकेश व्यास, श्री श्याम निर्मल आदि ने बधाई दी।
                                                                         
                                                               डॉ. अनिल जूनवाल
संयोजक, राजभाषा संघर्ष समिति, उज्जैन

                                                             मोबा ॰ 9827273668 







नई विधा में प्रकाशित युगल बैरागी की रपट

20170721

कुरंडा की अनन्य अनुभूतियों से जुड़े बिम्ब: ऑस्ट्रेलिया प्रवास की जादुई स्मृतियाँ - दो

ऑस्ट्रेलिया के पूर्वोत्तर तट पर क्वींसलैंड राज्य में कैर्न्स नगर के समीपस्थ कुरंडा एक पहाड़ी गांव है। ऑस्ट्रेलिया के प्रमुख पर्यटन स्थलों में एक कुरंडा अपने नैसर्गिक वैभव, आदिम सभ्यता से जुड़े लोगों की संस्कृति, कला रूपों, सुदर्शनीय रेलमार्ग और स्काई रेल की रोमांचक यात्रा के लिए जाना जाता है। ऑस्ट्रेलिया प्रवास के दौरान कुरंडा से जुड़ी सपनीली यादों के साथ कुछ छायाचित्र यहाँ पेश हैं। 
कुरंडा ऑस्ट्रेलिया में शुरुआती तौर पर बसने वाले लोगों के साथ उष्ण कटिबंधीय वर्षावन की पहाड़ियों पर विकसित होने लगा था। कैर्न्स से मीटर गेज ट्रेन से जाना और लौटने में स्काई रेल की रोमांचकारी सवारी इस यात्रा को अविस्मरणीय बना गए। इस इलाके की प्रमुख नदी बैरोन है। रेल यात्रा के दौरान सम्मोहक बैरोन फॉल्स को निहारने के लिए ट्रेन कुछ देर रुकती है।
कुरंडा में क्वाला और वन्यजीव पार्क 1996 में खोला गया है। यहाँ ऑस्ट्रेलिया की पहचान को निर्धारित करने वाले क्वाला, कंगारू, मगरमच्छ, वेलेबिज, डिंगो, वोम्बेट, कैसॉवरी, छिपकली, मेढक और सांप सहित कई ऑस्ट्रेलियाई मूल के अचरजकारी जीवों को निकट से महसूस करना अनन्य अनुभूति दे गया। 
कुरंडा में अनेक प्रकार का भोजन उपलब्ध है, जो इस क्षेत्र की विविधता को दर्शाता है। दुकानों, कला दीर्घाओं, कैफे और रेस्तरां की दिलचस्प सरणियाँ यहाँ मिलीं, जहाँ से कुछ स्मृति चिह्न भी संचित किए। ऑस्ट्रेलिया के आदि निवासियों, जिन्हें अबोरजिनल कहा जाता है, की कला और सांस्कृतिक विरासत के अवलोकन का यादगार मौका भी इस गाँव में मिला। आदि निवासियों के परिवार से जुड़ा एक युवा एक हाथ में बूमरैंग लिए और दूसरे हाथ में सुषिर वाद्य डिजरीडू (didgeridoo) या डिडजेरिडू बजाते हुए मिला। भारतीय संगीत परम्परा में वायु द्वारा बजाये जाने वाले वाद्य सुषिर वाद्य या वायुवाद्य या फूँक वाद्य कहे जाते हैं, जैसे- बाँसुरी, शंख, तुरही, भूंगल, शहनाई आदि। ऑस्ट्रेलियाई डिजरीडू (didgeridoo) काष्ठ निर्मित वाद्य यंत्र है। डिजरीडू (didgeridoo) ऑस्ट्रेलिया के आदिवासी समुदाय द्वारा विकसित एक वायुवाद्य है, जिसमें श्वास या वायु द्वारा ध्वनि उत्पन्न की जाती है। अनुमान लगाया जाता है कि इसका विकास उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में पिछले 1500 वर्षों में कभी हुआ था। वाद्य यंत्रों के होर्नबोस्तेल-साक्स वर्गीकरण में यह एक वायुवाद्य है। वैसे तो ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों ने प्रकृति के साथ तादात्म्य लिए तीन वाद्ययंत्र विकसित किए हैं - डिजरीडू (didgeridoo), बुलरोअरर और गम-लीफ। इनमें दुनियाभर में सबसे अच्छी तरह से जाना जाता है  डिजरीडू। यह एक सादी सी लकड़ी की ट्यूब जैसा वाद्य है, जो तुरही की तरह एक वादक के होंठ के साथ मुख मार्ग के नियंत्रणीय अनुनादों से ध्वनिगत लचीलापन हासिल करता है। आधुनिक डिजरीडू प्रायः 1 से 3 मीटर (3 से 10 फ़ुट) लम्बे होते हैं और बेलन या शंकु का आकार रखते हैं। इन पर प्राकृतिक उपादानों से अनुप्राणित बहुत सुंदर अलंकरण किए जाते हैं।
कुरंडा ग्राम की अमिट छाप को सँजोते हुए हम लोगों की कैर्न्स वापसी स्काई रेल के जरिए हुई। स्काई रेल उत्तर क्वींसलैंड के उष्णकटिबंधीय वर्षावनों के माध्यम से 7.5 किमी की दूरी तय करने का एक अनोखा अवसर प्रदान करती है। इसके जरिये दुनिया का अपने ढंग का पहला, सुरक्षित और पर्यावरण के अनुकूल तरीके से प्राचीन उष्ण कटिबंधीय वर्षावन को देखने और अनुभव करने का मौका मिलता है।
स्काई रेल 31 अगस्त 1995 को आम जनता के लिए खोला गया था। केबल वे को मूल रूप से 47 गोंडोला के साथ स्थापित किया गया था, जो प्रति घंटा 300 लोगों की क्षमता से युक्त थी। मई 1997 में इसका उन्नयन पूरा हुआ और गोंडोला की कुल संख्या बढ़कर 114 हो गयी। अब यह प्रति घंटे 700 लोगों को क्षमता रखता है। दिसंबर 2013 में, स्काई रेल ने 11 डायमंड व्यू ग्लास फर्श गोंडोला की शुरुआत की, जिसमें 5 लोगों की सीट है और नीचे के रेन फोरेस्ट के अवलोकन का एक और अद्भुत परिप्रेक्ष्य सामने आया है। कुरंडा नेशनल पार्क और  बैरोन गोर्ज नेशनल पार्क विश्व विरासत में शामिल किए गए ऑस्ट्रेलियाई वर्षा वन के अंग हैं। इनके संरक्षण के लिए अपनाई गई रीतियों से दुनिया बहुत कुछ सीख सकती है।




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